रोग-प्रबंधन :
वर्तिकाग्र-सड़न
(फोमोप्सिसप्सिडिडे
केमरा):
लक्षण: वर्तिकाग्र से प्रारंभ होकर फलों का गोलाकार से अनियमित विवर्णन इसका प्रमुख लक्षण है। प्रभावित भाग हल्के पीले क्षेत्र से घिरे लाल-भूरा हो जाता है और नरम हो जाता है। फल सड़ने लगते हैं, जो तनाग्र की ओर बढ़ता है और पूरे फलों पर फैल जाता है। कभी-कभी अप्रकट संक्रमण भण्डारण के दौरान पके फलों के सड़ने का कारण बन जाता है, जो धीरे-धीरे अन्य स्वस्थ फलों पर फैलता है। बढ़ने वाले तरुण पत्ते और प्ररोह भी इस रोगवाहक से प्रभावित होते हैं।
रोग विज्ञान: वर्षा के मौसम यह बीमारी अत्यंत गंभीर होती है। यह दिसम्बर के महीने में प्रकट होती है और फरवरी व मार्च में शीघ्र फैल जाती है।
प्रबंधन: बीस दिनों के अंतराल में कार्बेंडाज़िम (बाबिस्टिन 0.1%) या थायोफेनेट मीथाइल (टॉप्सिन एम या रोको 0.1%) या क्लोरोथालोनिल (कवच 0.2%) के छिड़काव से इस बीमारी का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।