फसल-उत्पादन
अमरूद (साईडियम गुजाव): दृढ़ प्रकृति और व्यापक अनुकूलन-क्षमता के कारण अमरूद भारत के उष्ण एवं उपोष्ण भागों में वर्ष भर उगाया जा रहा प्रमुख फल है। विभिन्न फल फसलों में अमरूद एक उत्तम, पौष्टिक रूप से बहुमूल्य और लाभदायक फसल है। अमरूद के फलों का उपयोग ताज़े खाने और प्रसंस्करण के लिए किया जाता है। उच्च पोषक मूल्य के अतिरिक्त, कम उत्पादक-सामग्रियों के प्रयोग और कम देखभाल से भी इससे अच्छी पैदावार और आय प्राप्त होती है। यह वर्षा-आधारित क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त है।
फसल-विनियमन
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फसल-विनियमन: अमरूद में पुष्पण के दो अलग-अलग मौसम हैं, जैसे वसंत (अप्रैल-मई) और बारिश का मौसम (अगस्त-सितम्बर), जिससे फल वर्षाकाल में और गर्मी के मौसम में पकते हैं। दक्षिण भारत में अक्तूबर में कम ही सही, एक तीसरा पुष्पण भी घटित होता है। सर्दी के मौसम की फसल की तुलना में बारिश के मौसम की फसल के फलों की गुणवत्ता कम होती है और कई कीटों से प्रकोपित होती है। इसलिए फल की गुणवत्ता और लाभ पाने के लिए सिंचाई को रोककर, जड़ों को खोलकर, छँटाई और फूलों कम घना करते हुए पुष्पण का विनियमन करना आवश्यक है। जलवायु और फसल-स्वरुप के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में फसल-विनियमन की अलग-अलग विधियाँ अपनाई जाती हैं। प्रायद्वीपीय भारत में मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर किसी विशेष स्थान पर दिसम्बर से जून तक या बारिश के शूरू होने तक सिंचाई को रोकने की अनुशंसा की जाती है। पश्चिमी भारत में बारिश के मौसम की फसल को दबाने के लिए जड़ को खोलने या जड़ की छँटाई की विधियाँ अपनाई जाती हैं ताकि सर्दी में अच्छी फसल मिलें। देश के उत्तरी भाग में बारिश के मौसम की फसल से बचने के लिए मई के पहले सप्ताह में ¾ भाग और वर्तमान मौसम के प्ररोहों की वृद्धि के आधे भाग की छँटाई की जाती है। फूलों और फलों को हाथ से कम घना किया जाए। उत्तर भारत में इसके लिए रसायनों, जैसे नाफ्थेलीन एसेटिक अम्ल (एनएए) 100-800 पीपीएम (जलवायु के आधार पर), नाफ्थेलीन एसेटामाइड 50-75 पीपीएम, कार्बेरिल 300 पीपीएम, ईथेफॉन 300-500 पीपीएम, 2-4 डाइक्लोरोफेनोक्सी एसेटिक अम्ल (2,4-डी) 30-50 पीपीएम और यूरिया 10-15 प्रतिशत का छिड़काव भी प्रभावी पाया गया। बैंगलूर परिस्थितियों में विभिन्न विधियों, जैसे छँटाई, विभिन्न गाढ़ता में एनएए, ईथेफॉन, पोटाशियम आयोडाइड और यूरिया का प्रयोग, से फसल-विनियमन करने से वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुआ।